Thursday, April 5, 2018

*****सरकार के दावे और बेरोजगारी!*****
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आज छात्रों को समझ नहीं आ रहा कि उनकी पढ़ाई लिखाई का कोई मतलब भी है या नहीं। वो न तो अपने गाँव जा कर किसानी कर सकते हैं, न ही शहरों की ऐसी स्थिति है कि सारे युवाओं को अपने यहाँ नौकरी दे सके और न ही उनका सरकारी नौकरी ही लग रहा है। आज तीन तीन चार चार साल से युवाओं की पूरी फौज तमाम शहरों में कबूतर खानों में जीने को मजबूर हैं उन्हें अपना पूरा भविष्य ही अंधेरे में दिखाई दे रहा है।
अब वो किसानों की जिंदगी क्यों नहीं जीना चाहते? आप ही सोचिये की आखिर कोई बंदा जानबूझकर अपने आप को मौत के तरफ क्यों ले जाएगा जबकि उसने उसी से ही तो छुटकारा पाने के लिए पढाई की थी या कर रहे हैं।
अब सरकार की समस्या ये है कि वो सबको नौकरी तो नहीं ही दे सकते। मगर आप सोच तो सकते ही हैं कि ये जो हालात हैं वो वाकई बहुत गंभीर और आत्मघाती है। कल को नई पीढ़ी होगी ही नहीं जो किसान होंगे। मतलब हम खाद्यान्न उत्पादन में बहुत भारी किल्लत की तरफ बढ़ रहे हैं। आने वाले वक़्त में हम शायद दूसरे देश पर खाद्यन्न के लिए निर्भर होने लगें।तो क्या शिक्षा, हमारे देश के लिए शाप बनने वाला है? बिल्कुल नहीं। मगर इस शिक्षा के एकतरफ़ा इस्तेमाल से देश में असंतुलन पैदा जरूर हो गया है या होने वाला है।आज अगर किसानों को अपने काम के एवज में मोटा मुनाफा होता तो शायद ऐसे हालात ही नहीं होते। मगर हालात ऐसे भयावह स्थिति में पहुंच गए हैं कि किसानों को अपनी लागत ही नहीं मिल रही मुनाफा तो बहुत दूर की बात है।आज किसानों के पास आत्महत्या करने के सिवाय कोई दूसरा चारा ही नहीं बचा है।जो जिंदा हैं वो नही चाहते कि उनका बच्चा बड़ा होकर किसान बने।
तो क्या इसका कोई समाधान नहीं है?बिल्कुल है! अगर किसानों को उनकी जीविका के लिए ही नहीं वरण उन्हें अच्छी लाइफ स्टाइल जीने के लिए उनके पास अच्छा खासा मुनाफा कमाने को मिले तो सारे प्रॉब्लम सॉल्व हो सकते हैं। उन्हें उनके द्वारा उपजाये आनाज की वाजिब कीमत मिले तो जरूर बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है लेकिन दूसरी समस्या ये है कि आखिर ये होगा कैसे? आपको महंगाई बढ़ानी पड़ेगी...!वो भी 400से 500 प्रतिशत तक या उससे भी ज्यादा। मगर इससे मिडिल क्लास नौकरी पेशा लोगों के आत्महत्या के दिन आ जायेंगे। मतलब उधर की बीमारी इधर।

अब एक बात पर गौर करते हैं कि आखिर नौकरी पेशा या मिडिल क्लास सोसायटी के आमदनी का अधिकांश हिस्सा कहाँ जाता है? उनके अपने बच्चों के पढ़ाई के ऊपर। ये मिडिल क्लास सोसायटी अपने बच्चों को खूब अच्छी शिक्षा देने के लिए अपनी आमदनी का 50% से लेकर 80% तक शिक्षा पर ख़र्च करते हैं। मगर कहाँ? प्राइवेट स्कूलों पर, प्राइवेट ट्यूटर पर और प्राइवेट लिमिटेड कोचिंग संस्थानों पर।

मेरे हिसाब से यही सारे असंतुलन पैदा कर रहे हैं। आज अगर सरकारी शैक्षिक संस्थानों की हालत खराब नहीं होती तो ये सारे पैसे किसानों की जिंदगी बदलने के काम आ सकते थे। आज सरकारी स्कूलों को तबाह कर प्राइवेट स्कूलों में बदल दिया गया है। ये सरकारी स्कूल शिक्षा तो दे रहे हैं मगर लोगों से पैसे भी उसी प्रकार चूस भी रहे हैं। आज जरूरत है कि देश के तमाम सरकारी स्कूलों का जीर्णोद्धार किया जाय उन्हें शिक्षक के साथ साथ तमाम समकालीन शैक्षिक संसाधनों से लैस किया जाय। आप यक़ीन मानिये इस एक कदम से किसानों की भी समस्या खत्म हो जायेगी और उसके साथ साथ बेरोजगार युवाओं की बहुत बड़ी फौज भी किसानी के तरफ वापस लौट जाएगी। ये पढ़े लिखे युवा अपने वैज्ञानिक सोच से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन भी लाकर खड़ा कर देंगे। और उनके शिक्षा का एक बेहतरीन उपयोग भी यही होगा।

राज आर्यन